कैसे कहें ​’​माननीय​’​ ?

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सत्ता के गलियारे से… रवि अवस्थी
कैसे कहें ​’​माननीय​’​ ?
कहते हैं ​,​जैसी करनी ,वैसी भरनी । प्रदेश के चार विधायकों को ही लीजिए। खरगापुर के विधायक राहुल लोधी ने तत्कालीन महिला विधायक की राह में कांटे बोवने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। पलटवार में यही कांटे उन्हें ऐसे चुभे कि सुप्रीम कोर्ट में अपील के बावजूद विधायकी खतरे में है ।

सुमावली से कांग्रेस विधायक अजब सिंह कुशवाहा (Photo)का कारनामा तो और भी गजब है। जनाब ने सरकारी जमीन ही अपनी बताकर बेच दी ! खुद तो फंसे ​,​पत्नी और मित्र को भी जेल यात्रा के लिए सहभागी बना लिया।

ग्वालियर के विशेष न्यायालय का फैसला आते ही वेतन ​, ​भत्ते पर तो रोक लग ही चुकी है​ । हाईकोर्ट में हुई अपील के फैसले का इंतजार है। कांग्रेस के ही एक अन्य विधायक गंधवानी से उमंग सिंघार ‘घर के चिराग’ से ही दामन पर दाग लगा बैठे। वहीं चौथे ​’​माननीय​’​ आलोट के मनोज चावला जनहित में कानून को ही बिसरा गए और अब पुलिस से आंख-मिचौली कर रहे हैं।

** जहां,जहां पांव पड़े ‘संतन ‘ के…
यह लोकोक्ति तो कुछ और है लेकिन गुजरात चुनाव में भाजपा को मिली बंपर जीत ने पार्टी नेताओं के लिए इसके मायने बदल दिए। मप्र से ही शताधिक नेता व कार्यकर्ता पार्टी उम्मीदवारों के प्रचार में वहां पहुंचे ।

मालवा के तो करीब 90 कर्मठ कार्यकर्ताओं ने पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती के नेतृत्व में चुनाव पूर्व ही प्रदेश की सीमा से लगे जिलों में डेरा डाल दिया था और 37 में से 35 सीटों पर सफलता दिलाई।
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ,मंत्री अरविंद भदौरिया व इंदर सिंह परमार उन नेताओं में शामिल हैं ,उन्होंने जहां-जहां पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार कियाए सभी जगह भाजपा विजयी रही।

वहीं प्रदेश के गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा व पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का स्ट्राइक रेट 80 फीसदी रहा।

जबकि एक सड़क हादसे के कारण डिस्टर्ब हुए चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग को सिर्फ 25 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से संतोष करना पड़ा। यानी गुजरात के मतदाताओं ने मान सबका रखा। किसी का कम किसी का ज्यादा।

**गुजरात फार्मूले की आहट…
चुनाव व अटकलों का चोली-दामन का नाता है। गुजरात ,हिमाचल के बाद अब अगले साल मप्र समेत तीन राज्यों के चुनाव होना है।

मप्र में हिमाचल से अधिक चर्चा गुजरात की है। विशेषकर पूरे घर के बदलने वाले उस फार्मूले की जिसने पार्टी को वहां अभूतपूर्व सफलता दिलाई। कयास  यही लगाए जा रहे हैं कि पिछले अनुभव को देखते हुए पार्टी नेतृत्व मप्र में भी यह फार्मूला अपना सकता है।
ऐसे मौके की तलाश में रहने वाले बघेलखंड के एक विधायक ने तो इसकी मांग भी कर डाली। वहीं जानकारों की माने तो समीकरण व हालात दोनों ही राज्यों के भिन्न हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज प्रदेश में लोकप्रियता के शिखर पर हैं। थोड़ी बहुत मुखालफत यदि कहीं है भी तो वह सरकार से अधिक स्थानीय नुमाइंदों के कारनामों को लेकर,फिर वे सत्ता का हिस्सा हों या संगठन के।

** झटपट न्याय का दौर…..
‘सरकार’ हो या विपक्षी विधायक । चुनाव में साल भर से भी कम समय देख धड़कनें सबकी बढ़ी हुई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीते एक पखवाड़े के दौरान ही सार्वजनिक मंच से दर्जनभर से अधिक अधिकारी, कर्मचारियों को निलंबित कर चुके हैं। वहीं मंच को जनता की अदालत बताकर कई अधिकारियों से सार्वजनिक तौर पर सवाल-जवाब भी किए।
इधर ,पथरिया से विधायक रामबाई ने भी गत दिनों अपने निर्वाचन क्षेत्र की एक पंचायत में दरबार लगाया और आवास योजना में रिश्वत लेने वाले सरपंच पति की जेब से रकम निकलवाकर पीड़ितों को वापस दिलाई। बकाया रकम भी जल्दी वापस करने के लिए चेताया। रामबाई इस अनोखे अंदाज को लेकर फिर चर्चा में हैं।
वहीं ,लाख कोशिशों के बाद अफसरों के रवैए में सुधार ला पाने में नाकाम प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रधुम्न सिंह तोमर को एक बार फिर चेतावनी देनी पड़ी कि जल्दी ही उनके निर्वाचन क्षेत्र में स्ट्रीट लाइट की समस्या दूर नहीं हुई तो वह स्वयं खंभे पर चढ़कर लाइनमैन का काम करेंगे।

** स्क्रिप्टेड था दमोह का अमृत महोत्सव ?
असंतुष्टों को साधना कोई भाजपा से सीखे । करीब साल भर से रूठे  दमोह के वयोवृद्ध नेता जयंत मलैया को मनाकर भाजपा ने बुंदेलखंड में खोते जनाधार को वापस पटरी पर लाने का जतन किया है । बताया जाता है कि मलैया को नोटिस थमा की गई गलती को सुधारने की स्क्रिप्ट तो राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर पहले ही लिख ली गई थी।

इंतजार सिर्फ सही वक्त का था और मलैया के 75 वें  जन्मदिन यानी अमृत महोत्सव को इसके लिए चुना गया। एक,दो नहीं कई दिग्गज नेता इसमें जुटे। इस सामूहिक कवायद के जरिए प्रदेश को नहीं,नेतृत्व को भी संदेश देने का प्रयास हुआ कि मप्र में सबकुछ ठीक है। अंतिम वक्त तक नहीं समझ पाए तो वे चंद असंतुष्ट जो इस कार्यक्रम के बहाने पार्टी पर दबाव बनाने की कोशिश में थे।

** उन्हें विरोधियों की जरूरत ही नही .. .
लगातार सिमटती जा रही कांग्रेस को अब लगता है विरोधियों की भी जरूरत नहीं। उसके कुछ बुजुर्ग नेता समय-समय पर यह भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। इनकी फेहरिस्त लंबी है ,लेकिन बानगी के लिए फिलहाल दो ही नाम काफी है।

पहला पार्टी के नए नवेले अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तो दूसरे मप्र के वयोवृद्ध नेता राजा पटेरिया। इनके बयानों ने कांग्रेस को एक बार फिर बैकफुट पर ला दिया है।

** पहाड़ी के नाम ने बढ़ाई चिंता….
ग्वालियर की कैंसर पहाड़ी अपने नाम को लेकर इन दिनों चर्चा में है। अस्पताल की पहचान के तौर पर आम बोलचाल में शुरू  हुआ यह नाम लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि चलन बन बैठा।

पहाड़ी के नाम पर गौर फरमाया,केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की धर्मपत्नी श्रीमती प्रियदर्शिनी सिंधिया ने।

उन्होंने कहा,जो जगह सुबह की सैर के लिए सैकड़ों लोगों की पहली पसंद हो उसका ऐसा भयावह नाम। उन्होंने सिर्फ प्रतिक्रिया ही नहीं जताई बल्कि पहाड़ी का नाम बदलने अभियान छेड़ दिया है।

महल से निकलकर किसी आमजन की तरह वह पैदल ही लोगों के बीच पहुंची। लोगों से घुली-मिलीं,चाय-नाश्ता भी हुआ। सहज अंदाज में अपनी बात भी रखी। जल्दी ही यह पहाड़ी अब संजीवनी नाम से पहचानी जाएगी।

** दिया -बाती दी ,तेल नहीं ..
सरकार ने सीपीए को ख़त्म कर इसका काम दो विभागों को सौंप दिया। बहुत अच्छा किया। कामकाज का बंटवारा भी हो गया , लेकिन बजट का नहीं। नतीजतन ,शहर के कई पार्क उजाड़ होने को हैं या बिजली कनेक्शन कटने से अँधेरे में ,फिर वह अफसरों का पसंदीदा एकांत पार्क हो या अशोका गार्डन का नया नवेला विवेकानंद पार्क।

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