” आहार सिर्फ हमारे शरीर को पौष्टिकता व उर्जा ही प्रदान नहीं करता,बल्कि इसका संबंध हमारी मनोवृत्ति से भी है। कहावत भी है कि जैसा खाए अन्न,वैसा हो मन..हालांकि इस कहावत का आशय तामसी व सात्विक भोजन से है।”
** ज्योति अवस्थी
तामसी भोजन शरीर में उत्तेजक मनोवृत्ति को बढ़ाता है। वहीं सात्विक भोजन sattvic food हमारे मानसिक ऊर्जा को सही दिशा में उपयोग करने में सहायक है। यह हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही पाचन को दुरुस्त करने,ब्लोटिंग गैस इत्यादि के कारण पेट फूलना खत्म करने एवं वजन घटाने में सहायक है।
कहते हैं सात्विक भोजन में स्वाद का बहुत महत्व है। जैसे मीठे का उपयोग प्रेम व स्नेह के भाव को उजागर करता है तो कड़वे स्वाद से फैट और प्रोटीन बर्न होते हैं। वहीं नमकीन व खट्टा स्वाद शरीर को अंदरूनी तौर पर रिपेयर करता है। सात्विक भोजन अधिक तेल,मसाले से रहित होता है।
भोजन कैसा है,इससे अधिक महत्वपूर्ण यह कि यह कैसे पकाया गया। हिंदू संस्कृति Culture में भोजन पकाने की कला Art of cooking के साथ ही रसोई घर की साफ -सफाई,शुद्धता का बेहद महत्व है। पहले जब रसोई गैस का उपयोग बेहद सीमित था,भोजन कंडे,लकड़ी की आग में कच्चे-पक्के चूल्हे पर पकाया जाता था। दोनों ही प्रकार से भोजन पकाने के स्वाद Taste में जो अंतर है,वहीं इसे पकाते समय रसोई घर की शुद्धता Purity व अशुद्धता Impurity पर भी लागू होता है।
भोजन पकाते समय रसोई घर में शुद्धता,सफाई जितनी अधिक होगी। पका हुआ भोजन उतना ही स्वादिष्ट,सात्विक ऊर्जा प्रदान करने वाला होगा। शायद यही वजह है कि पूर्व में जब भोजन कच्चे चूल्हे पर बनता था तो महिलाएं न केवल समूचे रसोई घर बल्कि चूल्हे को भी पूरी तरह शुद्ध करने के बाद भोजन पकाने की प्रक्रिया शुरू करती थीं। यहां तक कि चूल्हे Stove के ठंडे होने पर इसे अंदर-बाहर से गीले कपड़े से पोछा जाता था,कुछ महिलाएं Women इसे गेरू से भी पोत कर अगले दिन के लिए तैयार रखती थीं।
भोजन पकाने के लिए बर्तनों को अच्छी तरह साफ किया जाता। आलू को उबालने से पहले व सब्जियों को काटने से पहले इन्हें खूब धोया जाता। मिट्टी व रेत लगे आलू को बिना धोए उबालने से इसका मटमैला पानी इसके अंदर प्रवेश कर इसके स्वाद को बदल देता है।
भोजन पकाने में रसोई घर की शुद्धता के साथ ही अधिक महत्वपूर्ण है इसे पकाने वाले का भी साफ सुथरा होना। आमतौर पर रसोई पकाने वाले स्नान के बाद ही रसोई घर में प्रवेश करते हैं। भारतीय संस्कृति में इस पर बहुत अधिक जोर दिया गया है। तीसरी महत्वपूर्ण बात है,भोजन पकाते समय इसे पकाने वाले व परोसने वाले की रुचि।
कहते हैं कोई काम यदि रुचि से किया जाए तो इसका प्रतिफल उतना ही खूबसूरत होता है। यही बात,भोजन के पकाने व परोसने की प्रक्रिया पर भी लागू होती है। शुद्धता का पूरा ध्यान रखते हुए रुचि व प्यार के साथ पकाया व परोसा गया भोजन इसका सेवन करने वाले को न केवल भाता है बल्कि उसे वह एक नई सकारात्मक ऊर्जाPositive energy का भी संचार करता है।
वहीं बेमन व अशुद्ध तरीके से तैयार एवं बेतरतीब तरीके से परोसा गया भोजन इसे सेवन करने वाले में नकारात्मक Negative ऊर्जा पैदा करता है। जो आलस्य,क्रोध व कलह का कारण बन सकती है। सनातन धर्म में आज भी अनेक परिवारों में रसोई स्थल व रसोई पकाने वाले की शुद्धता पर अधिक जोर दिया जाता है।
प्रसिद्ध मोटिवेटर शिवानी जी तो भोजन करते समय टीवी न देखने की सलाह देती है। उनका मानना है कि भोजन करते समय टीवी देखने से जो दृश्य टीवी पर चल रहे होते हैं। उसका असर हमारे भोजन के साथ हमारी मनोवृत्ति पर भी पड़ता है।
तो सोचिए भोजन पकाना,सर्व करना व इसे ग्रहण करना,कितना संवेदनशील विषय है। जिसे हम कई बार बेहद लाइटली लेते हैं। तर्क,कुतर्क बहुत हो सकते हैं। कहा जाता है कि अशुद्ध तरीके से पकाया गया भोजन इसे ग्रहण करने वाले में आलस्य,रोग व परिवार में कलह को जन्म देता है।