उज्जैन। ईश्वर यूं तो कण-कण में विराजमान है,लेकिन उसकी पूजन के भी कुछ विधान हैं। भोलेनाथ के जलाभिषेक को ही लीजिए। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय दिशा का विशेष महत्व है। सही दिशा से चढ़ाया गया जल भगवान को आनंदित करता है,और उसके फल की प्राप्ति भी होती है। वहीं गलत दिशा से जल अर्पित करने से भोलेनाथ रुष्ट भी हो सकते हैं।
दरअसल, पूर्व दिशा को भगवान शिव का मुख्य द्वार माना जाता है। इस दिशा में खड़े होकर जल चढ़ाने से शिव के द्वार में अवरोध उत्पन्न होता है। वहीं उत्तर व पश्चिम में उनके पीठ व कंधा होता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण को छोड़ शेष तीन दिशाओं की ओर मुख कर पूजन करना श्रेयस्कर व फलदायी माना गया है। इनमें उत्तर दिशा सर्वश्रेष्ठ बताई जाती है। यही बात शिव जलाभिषेक पर लागू होती है। उत्तर दिशा की ओर मुख कर ही करें जलाभिषेक धर्म शास्त्रों के अनुसार हमेशा दक्षिण दिशा में खड़े होकर ही शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए। इस दिशा में खड़े होकर भगवान शिव को जल चढ़ाने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शिवलिंग पर दक्षिण दिशा में खड़े होकर जल चढ़ाते समय यह ध्यान रखें कि जल उत्तर दिशा की ओर से शिवलिंग पर गिरे, इससे भगवान भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं।
शिव का अत्यंत प्रिय है जल भगवान शिव के जल चढ़ाने के बारे में शिव पुराण में वर्णन आता हैं की देवाधिदेव शिवजी को जलधारा अत्यंत प्रिय है । शिवजी को नित्य प्रात काल ब्रह्म मुहूर्त में जल चढाना चाहिए | इसलिए जल चढ़ाते समय ध्यान रखें कि भगवान शिव को धीरे.धीरे धारा के रूप में मंत्र उच्चारण के साथ जल अर्पित करें । श्रद्धा एवं विश्वास के साथ जो भी मंत्र आता हैं उसका मनन करते हुए जल धारा शिवलिंग पर चढाने से भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहती हैं | जीवन की राह आसन होती हैं | अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है । भगवान शिव भक्तों को अत्यंत प्रिय हैं |
क्यों चढ़ाते हैं शिवलिंग पर जल ? सनातन धर्म में सभी भक्तजन अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार शिव पूजन करते हैं परन्तु सही विधि का ज्ञान नहीं होने के कारण शीघ्र फल प्राप्त नहीं होता | भगवान शिव का दूसरा नाम भोलेनाथ भी हैं। ये तो केवल भाव व श्रद्धा से की गई पूजा से प्रसन्न हो जाते है |शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता हैं इस का वृत्तांत समुद्र मंथन से जुड़ा हैं |
गर्मी शांत करने होता है जलाभिषेक
समुद्र मंथन के समय जब देवता और राक्षस समुद्र मंथन कर रहे थे तो समुद्र से की प्रकार के रत्न निकले। इन रत्नों से पहले समुद्र से भयानक हलाहल नामक विष निकलने लगा था । उस विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया | उनका गाला विष के प्रभाव से नीला हो गया। इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता हैं |
कहा जाता है कि विष के प्रभाव से शिवजी का शरीर बहुत गर्म हो गया। उनके शरीर से ज्वालाएं निकलने लगी । गर्मी शांत करने देवताओं ने उन पर जल धारा छोड़ी ।
इसीलिए संकट निवारण , शिवजी की प्रसन्नता तथा आशीर्वाद के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है । भगवान शिव पर जल के साथ साथ दूध , दही , शहद से अभिषेक करते हैं अभिषेक के पश्चात बिल्वपत्र , धतुरा पुष्प , नैवैद्ध्य मिठाई भी चढाई जाती हैं |
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